गंगा जी के किनारे, राजमहल में स्थापित कन्हैया स्थान की गाथा।
साक्षात प्रकट हुए थे भगवान श्री कृष्णा।
लेखक:- अन्हु शास्त्रिणी🖋️
आस्था के मार्ग पर चलने वाली यह जम्मू दीप, आर्यावर्त, भारतवर्ष राष्ट्र जहां के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। इस देश में अनेक आस्तिक है, तो कुछ नास्तिक भी है। हिंदू धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से तो यह पूरी तरह सिद्ध हो ही जाती है कि इस धरती में जब भी संकट आई है। मुसीबत आई है तब-तब ऊपर से किसी महान आत्मा धरती प्रकट हुए हैं। जिसे हम लोग भगवान की उपाधि दिए हैं वह राम,कृष्ण बुद्ध, महावीर, आदि आदि महान आत्मा है। लेकिन नास्तिक लोग भगवान को मानते ही नहीं है। और उन्हें काल्पनिक बता देते हैं। इसीलिए भगवान अपनी लीलानुसार स्वयं अपनी उपस्थिति, अपने भक्तों को दर्शन देकर देते हैं।
ऐसी ही एक घटना आज से 524 वर्ष पहले झारखंड के साहिबगंज जिले के राजमहल के गंगा जी किनारे कन्हैया स्थान में घटी थी।
कन्हैया स्थान की ऐतिहासिक घटना
सनातन, हिंदू धर्म के धर्म ग्रंथ श्री चैतन्य चरितामृत के अनुसार आज से 524 वर्ष पूर्व चैतन्य महाप्रभु बिहार के बोधगया अर्थात गया से अपने माता-पिता का पिंडदान कर अपने घर नवद्वीप वापस लौट रहे थे। तभी चैतन्य महाप्रभु इसी स्थान पर तमाल वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे। तभी वहीं तत् क्षण मोर मुकुट धारण किए हुए भगवान श्री कृष्णा, योग-योगेश्वर, यशोदा नंदन कान्हा भगवान श्री कृष्णा अपने बाल रूप में दर्शन दिए।
और चैतन्य महाप्रभु भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप का दर्शन कर उसको देख नि:शब्द रह गए। भगवान नारायण स्वरूप श्री कृष्ण को देख चैतन्य महाप्रभु से रहा नहीं गया फिर चैतन्य महाप्रभु भगवान कृष्ण को आलिंगन में लेनें की प्रयास किए तो जैसे भगवान श्री कृष्ण को आलिंगन करना चाहा तो वैसे ही भगवान श्री कृष्णा अंतर ध्यान हो गए। लेकिन श्री कृष्ण भगवान के पड़े पद चिन्ह आज भी इस कन्हैया स्थान मंदिर में पगस्थापित है।
जिस तमाल वृक्ष के नीचे चैतन्य महाप्रभु को भगवान श्री कृष्ण दर्शन दिए थे उस तमाल वृक्ष के बारे में एक अद्भुत कथा है की तमाल वृक्ष वही लगे होते हैं जहां श्री कृष्णा लीला करते हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार इन वृक्षों को अगर किसी दूसरे जगह में रोपा जाए तो वह मुरझा जाते हैं। यह घटना हमें बहुत कुछ सिखाती है कि एक भक्त को भगवान कद-कद में दर्शन देते हैं। बस भक्त की निष्ठा प्रभु के प्रति साफ सुथरी होनी चाहिए।
कन्हैया स्थान की संचालन की जिम्मेदारी इस्कॉन के हाथों।
हम सभी भारतवासी इस्कॉन का नाम तो जरूर सुने हैं। वास्तव में इस्कॉन अंतरराष्ट्रीय हिंदू संघ हैं इस्कॉन काफी मात्रा में विदेशियों को भारतीय संस्कृति की ओर खींच रहीं हैं। आप सोशल मीडिया में देखते हैं कि विदेशी, अंग्रेज, यूरोपीय लोग धोती, कुर्ता, लंबा तिलक लगाकर सार्वजनिक स्थलों में ढोल-तबला लेकर हरे-कृष्णा का कीर्तन करते दिखाई मिलता है। वह सब इस्कॉन का ही मेहनत का फल हैं। जो विदेशियों को भारतीय संस्कृति की ओर खींच रहीं है।
कन्हैया स्थान का संचालन 1995 में महंत श्री नरसिंह दास बाबा जी महाराज इस्कॉन को सौंप दिया था। साल 1997 में राधा कन्हैयालाल सिंह महाप्रभु ने इस्कॉन के जरिए, यहां मंदिर का स्थापना किया। वर्तमान समय में यहां की संचालन जिम्मेदारी प्राणजीवन चेतनदास जी कर रहें हैं।
जन्माष्टमी महापर्व में कन्हैया स्थान मंदिर खास क्यों?
प्रत्येक वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कन्हैया स्थान मंदिर की एक अलग दृश्य हो जाती है मंदिर के अगल-बगल में मेलें जैसी भीड़ हो जाती है सिर्फ एक दिन कृष्ण जन्माष्टमी तिथि को इस मंदिर में हजारों लाखों की भीड़ रहती है।
कैसे पहुंचे कन्हैया स्थान।
बाहरी पर्यटक कन्हैया स्थान आने के लिए वह रेल के द्वारा पश्चिम दिशा की ओर से साहिबगंज और पूरब दिशा की ओर से बरहरवा जंक्शन पर उतरकर ऑटो या ऑटो पकड़कर सीधे मंगलहाट के आना है, वही यह मंदिर कन्हैया स्थान मौजूद है।
कन्हैया का स्थान कन्हैया स्थान की अमर कहानी आप सभी पाठकों के सामने चंद शब्दों में बयां किया गया। आप सभी पाठकों को यह लेख अच्छी लगी हो तो शेयर करके हमारी टीम का उत्साह वर्धन करें धन्यवाद। जय हो श्री कृष्ण की, जय हो विश्व ज्ञान पुस्तक भागवत गीता की वंदे मातरम् जय श्री कृष्णा।
लेखक:- अन्हु कुमारी(शास्त्रिणी)🖋️
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