झारखंड के सिंगलोम की पहाड़ी की मिनी झरना, प्रकृति की अद्भुत खूबसूरती।
वसुधैव कुटुंबकम् के सिद्धांत पर चलने वाली यह भारत देश एक समय प्रकृति पूजक और प्रकृति प्रेमी के नाम से पूरी दुनिया में खूब व्याख्यात थी और आज भी प्राचीन काल के परंपराओं का कुछ अंश बरगत, पीपल, नीम, तुलसी, जैसी पेड़ो की पूजन में देखनें को मिलती हैं। लेकिन वर्तमान समय की परिस्थिति बेहद दुखद हैं। अंग्रेजी विचारधारा पर चल रहें विद्यालयों से पढ़कर निकलने वाले भारतीय, प्रकृति के महत्व को भूल चुकें हैं। इसलिए 1947, आजादी से पहले भारत देश में कुल 58% वन हुआ करते थे। लेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत देश के कुल क्षेत्र का मात्र 24% ही वन रह गए हैं। आखिर ऐसी स्थिति क्यों? आखिर पेड़ पहाड़ प्रकृति की पूजा करने वालीं देश की ही ऐसी स्थिति क्यों हैं?
भारत देश में जब अधिकांश क्षेत्र जंगलों से भरा हुआ था तब प्रकृति की एक अलग खूबसूरती थी पहाड़ों के अलग-अलग बड़ी अद्भुत खूबसूरत सी दिखने वाली झरने धीरे-धीरे पहाड़ों से लुप्त होती जा रही है। इस लेख में संलग्न तस्वीर झारखण्ड के संथाल परगना के लिट्टीपाड़ा स्थित सिंगलोम की जंगलों से लिया गया है जो बिल्कुल खूबसूरत सा स्पष्ट मिनी झरना दिख रहा हैं। एक दौर था जब इस देश में अनगिनत झरने हुआ करता था। अगर भारत देश की सबसे बड़ी झरना की बात की जाए तो गोवा कर्नाटक की बॉर्डर में स्थित दूध सागर जलप्रपात है। इसीलिए दूधसागर के विशाल जलप्रपात के बगल से ट्रेन भी निकलने के लिए दो इंजनों का सहारा लेकर बैलगाड़ी की तरह ट्रेन को बगल से निकलनी पड़ती है। और झारखंड के संथाल परगना की सबसे बड़ी झरना की बात करें तो वह साहिबगंज के मोती झरना जलप्रपात है। जहां पर देखने को लोग वहां रोजाना सैकड़ो, हजारों की भीड़ जाती है।
सिंगलोम कि यह मिनी झरना इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस झरने की पानी कहां से आती है। वह किसी को नहीं पता? स्थानीय आदिवासी, जनजाति लोग जो जल भरने यहां पर आते हैं, उन लोगों के अनुसार सैकड़ो किलोमीटर दूर से पहाड़ के भीतर-भीतर से जल इस झरने में आती हैं। इस झरने की एक ओर खासियत है कि इस मिनी झरना में बहता यह पानी 12 महीना 24 घंटा ऐसी ही एक गति पर अपनी रफ्तार से बहती है। झारखंड के अधिकतर पहाड़ी क्षेत्र के लोग ऐसे ही छोटे-छोटे झरनों के ही जल से अपनी जीवन को बचाए हुए हैं। लेकिन जब इस देश के लोग बोरिंग और सप्लाई पानी, आरो पानी, जैसी सुविधाओं से लोग अपरिचित था तब लोग पहाड़ी क्षेत्र वाले पूरे लोग झरनों का ही जल पीते थे। और समतल क्षेत्र में रहने वाले लोग कुओं का जल पीते थे। यहां स्थित झरना का जल आसपास क्षेत्र के अलग-अलग गांव के आदिवासी, जनजातीय लोग इसी झरना का पानी को ले जाकर पीने के लिए पूरे दिन इस्तेमाल करते हैं। आदिवासियों से उनकी भाषा में बातचीत करने पर स्थानीय आदिवासी बताते हैं, कि इन लोगों के यहां पीने की पानी का कोई दूसरा साधन नहीं है। ना बोरिंग है ना सप्लाई पानी है, और ना ही कुआं है। भले ही संथाल परगना की आदिवासी और जनजाति डिजिटल इंडिया की युग में जी रहा हों लेकिन इन लोगों के गांव में सुविधाए बिल्कुल प्राचीन काल के व्यवस्थाओं जैसी है। आदिवासी आदिकाल से जंगलों में वास करने वाले प्रकृति पूजक, प्रकृति रक्षक, लोग हैं। भारत सरकार आदिवासियों को सबसे पिछड़ा वर्ग मानते हैं। जिनको ST, और PVTG कैटेगरी में रखे हैं। लेकिन आज जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले आदिवासियों और जनजातियों की तस्वीर कुछ और देखने को मिलती है। चार तिहाई में तीन तिहाई आदिवासियों और जनजातियों को सरना धर्म को मानने वाले प्रकृति पूजकों को षड्यंत्र और प्रलोभन के द्वारा ईसाई(क्रिश्चियन)बना दिया गया है। जो पूरी तरह से आदिवासी और जनजाति जो सदैव जंगलों और पहाड़ों के रक्षक थे। वह प्रकृति पूजन भूल ईसाई संप्रदाय में सम्मिलित होकर ईसाईयत की गुणगान कर रहे हैं। चार तिहाई में तीन तिहाई आदिवासी, जनजाति इसलिए ईसाई बन गए। क्योंकि वह लोग पूरी तरह अशिक्षित है। गांव के एक भी आदमी मुश्किल से पांचवी कक्षा से आगे तक पढ़ा हो, वैसे भोले भाले आदिवासी व जनजाती लोग ईसाई मिशनरीयों के षड्यंत्र में फसकर अपना धर्म भूल चुके हैं।
प्रकृति के रक्षक को भुला कर प्रकृति से अलग कर दिया गया। आए दिन भारत देश की अलग-अलग संस्थान पर्यावरण को लेकर कई तरह-तरह की रिपोर्ट को प्रकाशित करते हैं। और रिपोर्ट में बखूबी पर्यावरण और जंगलों की दुर्दशा स्पष्ट झलकती है।, तो फिर क्या जंगलों को उजाड़ने वाले आदिवासी है?
बिल्कुल नहीं?, जंगलों में रहने वाले आदिवासी जो अपने गांव से अनेकों दूर ले जाकर सूखी टहनियों को बेचकर भले अपनी रोटी खरीद कर लाते हैं। लेकिन यह लोग जंगलों को उजाड़ने वाले लोग नहीं हैं। बल्कि जंगलो को उजाड़ने वाले अलग तरह के लोग होते हैं।, जिन्हें लकड़ी माफिया और पत्थर माफिया के नाम से दिया गया हैं। यही वह लोग होते हैं, जो चंद पैसों के लालच में अपनी कर्तव्य भूल, धर्म भूल जंगलो और पहाड़ों को कुरद रहें हैं। यह दरिंदे प्रकृति की गोद में चलकर, खेलकर बड़े होते हैं। और प्रकृति को ही उजाड़ने में लग जाते हैं। अभी वर्तमान समय में झारखंड के बहुत लकड़ी माफिया और पत्थर माफिया जेल की सजा काट रहा है। और हमेशा यह लोग मीडिया के सुर्खियों में बने रहते हैं। कुछ बड़े-बड़े माफिया एनफोर्स डायरेक्टरी के निशाने पर है। झारखंड बाहर से जितना खूबसूरत दिखने में है। उतना ही भीतर से अमीर है, झारखंड के गर्भ में भारत देश का 40% खनिज हैं। जिसमें 29% कोयला देने के मामले में झारखंड भारत का पहला राज्य हैं। झारखंड न केवल कोयला यहां पर अनेकों तरह की खनिज निकलती है। झारखंड में ऐसे भी जिले हैं। जो सिर्फ खनिजों के नाम पर है। जैसे अभ्रक नगरी कोडरमा, कोयला भूमि धनबाद, ऐसे अनेकों तरह की खनिज निकलती है। झारखंड में आनेको ऐसी नदियां हैं जहां बालू का अपार भंडार है। और झारखंड की नदियों का बालू अगल-बगल के राज्यों में भी जाता है। इसके अलावा झारखंड में सोना भी पाया जाता है। झारखंड की एक नदी जो स्वर्णरेखा के नाम से प्रसिद्ध है। झारखंड के उसे नदी में सोने के कण पाए जाते हैं।
इस लेख में यह कुछ लाइन झारखंड की प्रकृतिक अमीरी को बखूबी दर्शाती है। प्रकृतिक रुप से समृद्ध झारखंड राज्य, फिर भी भुखमरी अशिक्षित और बेरोजगार राज्यों की गिनती में सबसे ऊपर रहता है। आखिर क्यों? क्योंकि इस प्रदेश के अधीकतर लोग शिक्षित नहीं है या तो अपने अधिकारों को नहीं जानते हैं। इन्हीं के वजह से झारखंड जैसे अमीर राज्य के लोग गरीब बनकर झारखंड में रह रहे हैं।
अंत में महत्वपूर्ण बिंदुओं के साथ 1951 के जनगणना के अनुसार भारत देश की जनसंख्या 36 करोड़ थी। तो उस समय सन् 1947 में भारत देश का 58% हिस्सा जंगल था। लेकिन वर्तमान समय में भारत देश की कुल जनसंख्या 140 करोड़ है। तो वहीं जंगल मात्र 21% है। तो आप सभी पाठक आकलन कर सकते हैं मनुष्य की जीवन की क्या स्थिति है। किसी महान रचनाकार ने सही कहा है, की विनाश काले, विपरीत बुद्धि जब मनुष्य की बुद्धि गलत दिशा मोड़ लेती है। तो वह विनाश की खाई में जाकर समा जाती है। इसलिए अपने कर्म और धर्म को जानिए, पर्यावरण को लेकर कोई संकल्प कीजिए और अपने जन्मदिन पर एक पेड़ जरूर लगाइए। खाली पड़े जमीनों पर फूलों और फलों के बगीचे को लगाएं। अंत में विनम्रता पूर्वक एक लाइन के साथ कि "जिस दिन मरोगे अपने साथ एक पेड़ लेकर जलोगे", प्रकृति का जो कर्ज है वह तो चुका दो यारो जीते जी एक पेड़ तो लगा दो यारो" धन्यवाद। जय हिंद वंदे मातरम्
लेखक:- धनंजय साहा(एक राष्ट्रवादी पत्रकार)🖋
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